Saturday, October 29, 2016

ख़वाहिश की लंदन डायरी - 3

स्टेटफोर्ड अपॉन एवन- अगला दिन मेरे लिए जानकारियों से भरा हुआ था। हम लोग गए विलियम शेक्सपियर के गांव। इतना सुंदर गांव मैंने पहले कभी नहीं देखा था। यहां के लोगों ने शेक्सपियर के घर को अच्छे से संभाला हुआ था। यहां खूब सुंदर बगिया भी थी और जानकारियां भी। उस मेज पर बैठना जहां वो अपना अमूल्य समय बिताया करते थे काफी रोमांचक था। वही पलंग] वही खाने की मेज] वही कमरा...सब वैसा का वैसा। उनके सोचने का नज़रिया भी जैसे हर कमरे में झलकता था। उनके घर में खूब सारा समय बिताकर वहीं पास के एक पार्क में हम लोग जाकर बैठ गए। ठीक नदी के किनारे जहां बहुत सारे हंस और बत्तख थीं। वहीं कहीं एक बुलबुले बनाने वाली मशीन जैसा खिलौना बेचने वाला भी था। उसके पास ऐसा खिलौना था जिससे बहुत बड़े-बड़े बुलबुले बन रहे थे। मैंने भी उससे एक खिलौना खरीदा और अपने आसपास का माहौल बुलबुलों से भर दिया।

मैडम तुषाद- अगला दिन तो अब तक सबसे सुंदर दिन था। उस दिन मैं और मम्मी पहली बार खुद अकेले लंदन घूमने निकले। हमारे हाथ में मैडम तुषाद की दो टिकटें थीं और हम लोग बेकर स्ट्रीट से गुजरते हुए पहुंच गए
मैडम तुषाद म्यूजियम। वहां हम जैसे ही टिकट दिखाकर सामने अंदर पहुंचे सामने की दीवार पर कई तस्वीर खींचते मीडिया फोटोग्राफर्स की तस्वीरें लगी थीं थ्री डी में और आवाजें आ रही थीं। ऐसा महसूस करवाने के लिए जैसे हम कोई सेलिब्रिटी हों। हम अंदर जैसे ही पहुंचे चारो तरफ पुतले ही पुतले। पहले तो हमें यह लगा कि वहां इंसान ही खड़े हैं लेकिन ऐसा नहीं था। पुतले बड़े ही बखूबी बनाये गए थे। मैं तो एकदम आश्चर्यचकित हुई जब मैंने वहां कैटरीना कैफ, सलमान खान, अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, शाहरूख खान जैसे कई हिंदुस्तानी सिनेमा के स्टार्स के पुतले देखे। हमने हर पुतलों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं। वहां पर टॉमक्रूज का भी पुतला था। वैसे तो वहां कई नामी लोगों के पुतले थे पर सबसे अच्छा असली पुतला लग रहा था एल्बर्ट आइंस्टीन का। उसके बाद हमने वहां पर एक अच्छा सा इंडियन रेस्टोरेंट ढूंढा और खाना खाकर घर की तरफ बढ़ गए।

थेम्स नदी में सारा दिन -अगले दिन के लिए मैं थोड़ी डरी हुई थी। लेकिन शायद वह दिन मेरे दिमाग में छप गया था। अगले दिन मौसम ने कुछ खास साथ नहीं दिया। पहले हम लोग वहां के मशहूर एक्वेरियम सी-लाईफ में गये। वो काफी बड़ा भी था और मजेदार भी। मैंने वहां पर पहली बार पेंग्विन्स देखे और बहुत खुश हुई। लेकिन असली
मजा तो तब शुरू हुआ जब हम वहां से बाहर निकले और मूसलाधार बारिश शरू हो गई। हमने गीले होने से बचने के लिए टोपियां पहनीं और पुल के दूसरे छोर पर पहुंचे। जहां पर मामा खड़े थे यह बताने के लिए कि अब हमें कहां जाना है और अगली सवारी थी थेम्स बोट राइड की। हम लोग लाइन में लगकर उस छोटे से क्रूज में चले गए। मम्मी के मना करने के बाद भी मैंने जिद की और हम लोग क्रूज की छत पर चले गये। अब बारिश भी कम होने लगी थी और दो घंटे हम लोग पानी और मौसम का आनंद उठाते रहे। सच में ऐसा लग रहा था कि अभी पानी में से विशाल जलपरी निकलेगी. उस दिन की सबसे अच्छी बात यह थी कि हमने एक बार फिर से टॉवर ब्रिज को खुलते देखा।

(अगली कड़ी में स्कॉटलैंड....जारी )

No comments: