Monday, December 26, 2016

बर्फीले रास्तों में तुम्हारी याद का जादू...



इजाडोरा डंकन का नाम है, जरा संभल के लेना, सांसें अपनी संभाल के रखना. ये वही इज़ाडोरा है जिसके नृत्य ने न सिर्फ यूरोप बल्कि समूची दुनिया की साँसों को अपनी भंगिमाओं में कैद कर लिया था. १८ वीं सदी की इस अमेरिकन डांसर की समूची दुनिया दीवानी थी. इजाडोरा के नृत्य की अपनी ही शैली थी जिसके ज़रिये वो अपने चाहने वालों के दिलों पर राज़ किया करती थी. वो जब स्टेज पर होती थी तो किसी की तरफ नहीं देखती थी...वो खुद में गुम होती थी और नृत्य को जी रही होती थी. लेकिन एक रोज़ १९०४ की बात है जब वो बर्लिन में एक परफोर्मेंस दे रही थी उसकी नजर जा टकराई गार्डन क्रेग Gordon Craig से. वो कमाल का थियेटर आर्टिस्ट था और मशहूर अभिनेत्री एलन टेरी Ellen Terry का बेटा था. गार्डन ने अपने संस्मरण में इस परफौर्मेन्स का जिक्र करते हुए कहा था कि उसे देखते हुए वो किस तरह सुध-बुध खो बैठा था. परफोर्मेंस के बाद दोनों की मुलाकात ड्रेसिंग रूम में हुई. इस मुलाकात के बाद का एक ख़त आइये पढ़ते हैं जो इज़ा ने क्रेग को लिखा था. क्रिसमस वाले दिन..

क्रिसमस डे 1904/सेंट पीट्सबर्ग            
ग्रैंड होटल, द यूरोप

मेरे प्यारे,

भी-अभी सुबह यहाँ पहुंची हूँ....क्रिसमस की सुबह
मुझे यह अकेला कमरा, बिलकुल पसंद नहीं. ऐसा लग रहा है कि यहाँ की सारी कुर्सियां मुझे घूर रही हैं, डरा रही हैं. यह बिलकुल भी ऐसी जगह नहीं है जहाँ मेरे जैसा कोई खुश दिल वाला व्यक्ति रह सके. यह जगह उपन्यासों के ऐसे कोनों की मानिंद लगती है जहाँ अकसर घटनाएँ रहस्यमय तरह से आकार लेती हैं.

सारी रात ट्रेन सिर्फ पटरियों पर नहीं दौड़ रही थी बल्कि वो बर्फ के विशाल मैदानों से गुजर रही थी...खूबसूरत देश जो बर्फ की चादर ओढ़े खड़े थे उनके बीच से ट्रेन का गुजरना अद्भुत मंजर था...(इन सुन्दर द्रश्यों के बारे में वाल्ट विटमैन पहले ही कितना प्यारा लिख चुके हैं.) और इन सबके बीच चमकता हुआ चाँद. खिड़की के बाहर जैसे सुनहरी किरणों की बारिश हो रही हो...इस तरह सफ़र में होना, इन द्रश्यों से गुजरना, इन्हें महसूस करना कितना सुखद था.

मैं लगातार बाहर देख रही थी और तुम्हारे बारे में सोच रही थी. तुम जो मुझे सबसे ज्यादा अज़ीज़ हो, मेरे बेहद करीब हो. जानते हो क्रेग, मैं सारे रस्ते तुम्हें याद करती रही और कुदरत के मार्फत तुम तक अपने प्रेम के एहसास भेजती रही, उम्मीद है तुम्हें मिले होंगे...

अब मुझे जाना चाहिए, अपनी आँखों का काजल धो लेना चाहिए...और नाश्ता करना चाहिए. है न?

मेरा प्यार देना उस गली को जिसमें तुम्हारा घर है, गली नम्बर ११, और मेरा प्यार देना अपने प्यारे घर को, वही मकान नम्बर ६. और मेरा प्यार देना तुम अपने आपको भी...मेरा प्यार किस तरह छलक रहा है,कितना नाटकीय और ओल्ड फैशन लग रहा है न इस तरह से प्यार का इज़हार करना...पर प्यार है तो है...

मुझे ख़त लिखना...अब मैं नहाने जाती हूँ...

तुम्हारी
इज़ाडोरा

1 comment:

जसवंत लोधी said...

बहुत प्रेम भरी भावुक अभिव्यक्ति है । शुभकामनाए ।